Krishna Kumar Kanhaiya success story
बिहार के बेगूसराय जिले के साहपुर गांव के रहने वाले कृष्ण कुमार कन्हैया कृषि में ग्रेजुएशन करने के बाद 12 वर्षों तक टीवी पत्रकारिता के जरिए किसानों के हित में बाते करते रहें हैं परंतु उन्होंने 2012 में दिल्ली पत्रकारिता को छोड़ कर अपने गांव चले गए हैं और अपने गांव में जा कर जैविक खेती करके किसानों को जागरूक कर रहे हैं कृष्ण कुमार ने एक समय में बैंक से 10 लाख का लोन लिया था खेती करने के लिए TV9 से बात चीत करके कृष्ण कुमार ने बताया कि खेती करते समय उनको बहुत बड़ी समस्या का सामना करना पड़ा था क्योंकि वह बीमार पड़ गए थे उनको हार्ट सर्जरी करवानी पड़ी बीमार के समय बैंक दबाव के कारण उनको अपनी जमीन बेचनी पड़ी उसके बाद उन्होंने सारा कर्ज चुकाया उसके बाद भी उन्होंने हार नही मानी और किसानों को जागरूक बनाने के लिए बिहार से झारखंड आ गए।
झारखंड से वो किसानों से जुड़े और उसके बाद उनका भाग्य बदल गया क्योंकि अब वो 10 हजार वर्ग मीटर में नर्सरी चला रहे हैं इससे उनको सालाना 19 से 20 लाख रुपए की कमाई हो जाती हैं और इसके साथ ही वो आसपास के करीब 6 जिले के हजारों किसानों को जैविक खेती करने के गुण सीखा रहे हैं
बता दे की झारखंड में एक समय ऐसा था कि वहां धान को खेती सबसे अधिक गोड्डा जिले में होती थी परंतु पिछले कई सालों से किसान खेती को छोड़ कर नौकरी करने के लिए दिल्ली और दूसरे देशों में भागने लगे थे परंतु कृष्ण कुमार कन्हैया ने उनको खेती करने का बहुत अच्छा गुण सीखा दिया है अब सभी जिलों में पपीता, धान और बहुत से फलों को खेती करने के बारे में किसानों को जानकारी दे रहे हैं और उनको नर्सरी से सालाना 20 से 25 लाख की कमाई हो रही हैं।
कृष्ण कुमार कन्हैया ने धान की एक सुगंधित किस्म तैयार की है और यह यहां के किसानों के लिए आकर्षण का केंद्र बन गया है कृष्ण कुमार आपने गांव के किसानों के बारे में बात करते करते रोने लग जाते हैं वो बताते हैं कि वहां पर बेगूसराय की खेती को नकारने के विचार ने सबसे अधिक दुखी कर दिया था उनके गांव के किसान भी अब पपीता की खेती करते हैं क्योंकि अब धीरे धीरे उनमें भी बदलाव आ रहा है।
कृष्ण कुमार कन्हैया का कहना है कि किसानों को गेहूं और धान की फसलों के बदले फलों और फुलों की खेती करना चाहिए क्योंकि इनसे ही उनके आर्थिक हालत बेहतर हो सकते हैं और बता दे की इसका सही उदाहरण झारखंड के बहुत से इलाकों में है क्योंकि अब वहां पर किसानों के बच्चे नौकरी के लिए इधर उधर नही जाते है यानी भटकते नही है बल्कि फलों की खेती करके बहुत अच्छे से अपने परिवार को पाल रहे हैं सबसे अधिक कमी तो खेती के बारे में जानकारी देने वालों की हैं यह काम सरकारी विभाग तो करता ही है परंतु सुझाव देने वालों की कमी है ।