Haldiram Story :
हल्दीराम के प्रोडक्ट आज के वक़्त में हर घर में इस्तेमाल किये जाते है। आज भारत के कोने कोने में हल्दीराम का नाम बेहद फेमस है। पर क्या आपको पता है की कैसे एक गुलाम देश की छोटी सी दुकान आज भारत की बहुत बड़ी ब्रांड बन गयी। कैसा रहा हल्दीराम का सालों का सफर और कब मिली इस सफलता।
आज हम आपको हल्दीराम की सफलता की कहानी बताने जा रहे है। जिसकी शुरुवात बीकानेर के एक बनिया परिवार द्वारा की जाती है। इस परिवार के मुखिया का नाम तनसुखदास है जो की बहुत गरीब थे। और मुश्किल से अपने परिवार का गुज़ारा किया करते थे। ये बात आजादी से लगभग 50-60 पहले की है।
तनसुख दास के एक बेटे थे जिसका नाम भीखाराम था जो उन दिनों काम की तलाश कर रहे थे। भीखाराम ने अपने बेटे चांदमल के नाम पर “भीखाराम चांदमल” नामक एक दुकान खोली। उन दिनों आस पास के इलाको में भुजिया की डिमांड काफी थी जो की लोगो को खासा पसंद थी। उन्होंने भी भुजिया नमकीन बेचनी चाही और उन्होंने भुजिया बनाने की कला अपनी बहन ‘बीखी बाई’ से सीखी थी।
1908 में हुआ हल्दीराम का जन्म :
जिसके बाद भीखराम ने भुजिया बनाकर बेचना शुरू कर दिया। पर वे बाजार की बाकी भजिया की तरह ही थी जिस कारण उनकी बस रोजी रोटी चल रही थी। इसके बाद 1908 में भीखाराम के घर उनके पोते गंगा बिशन अग्रवाल का जन्म हुआ। उनकी माता उन्हें प्यार से हल्दीराम कह कर पुकारती थीं।
हल्दीराम ने बचपन से ही अपने घर में नमकीन बनते देखी थी। उनके अंदर सबसे अच्छी खूबी यह थी कि वे किसी काम को बड़ी मेहनत व लगन से जल्दी सीख लेते थे। उस वक़्त में शादी बहुत जल्दी कर दी जाती थी। महज 11 साल की उम्र में हल्दीराम की शादी चंपा देवी से हो गई।
अपनी शादी के बाद हल्दीराम ने दुकान पर बैठना शुरू कर दिया। उनकी दुकान की आमदनी कुछ खास नहीं थी इसलिए वो इसे बढ़ाना चाहते थे। ऐसे में हल्दीराम ने अपनी भुजिया के स्वाद को बढ़ाने के लिए कुछ बदलाव किया। उसमें उन्होंने मोठ की मात्रा को बढ़ा दिया। उस भुजिया का स्वाद उनके ग्राहकों को काफी पसंद आ गया।
हल्दीराम ने शुरू किया खुद का बिज़नेस :
बड़ा परिवार होने के कारण उनके घर में झगड़े होने लगे जिसके कारण उन्होंने खुद को परिवार से अलग कर लिया। जिसके बाद उन्होंने बीकानेर में साल 1937 में एक छोटी सी नाश्ते की दुकान खोली। जहां वे खुद से भुजिया भी बनाकर बेचते थे। कहा जाता है कि हल्दीराम हमेशा अपनी भुजिया का स्वाद बढ़ाने के लिए कुछ न कुछ बदलाव या एक्सपेरिमेंट करते रहते थे।
बाद में उन्होंने मार्केट में बिकने वाली भुजिया से खुद की बनाई गयी भुजिया के स्वाद के लिए अलग अलग तरीके अपनाये। आस पास बिकने वाली भुजिया नरम और मोटी होती थी जो अधिक स्वाद नहीं देती थी। हल्दीराम ने पतली और करारी भुजिया बनानी शुरू की और यह तरकीब काम कर गयी।
धीरे धीरे पुरे शहर में उनकी दुकान फेमस हो गयी और लोग उन्हें भुजिया वाले के नाम से जानने लगे जिसके बाद उन्होंने अपनी दुकान का नाम हल्दीराम रख दिया। और देखते ही देखते उनकी भुजीया की डिमांड आस पास के शहरो से कब पुरे भारत तक पहुँच गयी ये उनकी मेहनत का नतीजा था।